नश्तर :- सरकारी स्कूल का शिक्षक महानिकम्मा ( आस्था पाण्डेय ✍️)
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By Admin
Published - 16 July 2024 111 views
प्रयागराज। आइए रूबरू कराएं आपको सरकारी स्कूल से जुड़े कुछ मार्मिक पहलू से।
यहाँ केवल संवेदी व मानवीय पहलू पर चर्चा कर रही हूँ । नियमों व खामियों पर बातें किसी और दिन।
(आस्था पाण्डेय)
"मैडम! तुम हमारी मम्मी हो। हमको अपने घर ले चलो न।" मेरी कक्षा में पढ़ने वाली कुछ बच्चियों ने चिपट के मुझसे आज ऐसा कहा। हठात् ही दिल में ममत्व हिलोरें लेने लगा। लगा लिया गले से उन्हें बिना परवाह किए कि मलिन बस्तियों से आई उन बच्चियों के मैले कुचैले कपड़ों से महक आ रही है। उन्हीं कपड़ों में वे स्कूल भी आती हैं, घर भी सम्भालती हैं और कबाड़ भी बीनती हैं। यह है एक सरकारी स्कूल के शिक्षक और वहाँ पढ़ने (जाने) वाले बच्चों के बीच का संबंध।
जी हां, हम उसी सरकारी स्कूल के शिक्षक की बात कर रहे हैं जिसे अन्य सभी विभाग वाले पानी पी-पीकर कोसते हैं, जिसे हर व्यक्ति अपने मापदण्ड पर तौलने को आतुर बैठा है। जिनके खुद के बच्चे प्राइवेट स्कूल में जाते हैं, जो स्वयं काम से जी चुराते और सूखी तनख्वाह के ऊपर तर मलाई हजम करने के आदी हैं; वे भी जी-भर के कोसते हैं हम सरकारी स्कूल के शिक्षकों को। जिन अभिभावकों को अपने बच्चे का स्कूली नाम, उम्र और कक्षा ठीक से पता न हो, जो स्कूल में नाम लिखवाने भर को कक्षा 8 तक का मार्कशीट पाने की दावेदारी समझते हैं, जो शिक्षकों के बार-बार घर जाकर बुलाने पर भी अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजते, जो चंद रूपयों के लिए अपने नन्हे -मुन्ने को दुकान, कारखाने या घरों में काम पर लगा देते हैं; वो महाविद्वान अभिभावक भी सरकारी स्कूल के शिक्षकों को नसीहत देते हैं।
〰️जनाब! विषय यहां प्राइवेट स्कूल से प्रतिद्वन्द्वता का नहीं है पर आपने मलाई तो देखी होगी न। अच्छे गाढ़े दूध की गाढ़ी मलाई बिलोकर जो मक्खन निकलने के बाद छाछ निकलता है, उसे हटाकर बर्तन के अंदर जो करोवन बचा है उसे भी हटाकर उसी बर्तन में डालकर पानी, फिर छाना जाता है। अब जो शेष बचता है वह आता है हमारे सरकारी स्कूल के हिस्से में। लो टीचरों! अब तुम बनाओ घी और बनाओ लस्सी।
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हम फिर भी विचलित नहीं होते। बड़े जतन से अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभाते हैं। डॉक्टर, इंजीनियर, कलेक्टर भले ही न बना पाएं पर अच्छा-सच्चा इंसान बनाने की कोशिश जरूर करते हैं। प्राइवेट स्कूल के बच्चे जो फीस तो देते हैं मोटी मोटी रकम की स्कूलों में पर पास होते हैं ट्यूशन के भरोसे या अपने उन्ही शिक्षित माता-पिता के भरोसे जो सरकारी स्कूल के शिक्षकों को मन भर के कामचोर बताते हैं।
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क्या करें हम सरकारी स्कूल के शिक्षक, हम केवल हिन्दी, अंग्रेजी, गणित, विज्ञान ही नहीं पढ़ाते, हम तो जीते हैं उन बच्चों व उनके अभिभावकों की मजबूरियों व जिम्मेदारियों को। सुबह सवेरे उठकर ये नन्हे बच्चे अपने परिवारिक जिम्मेदारियों को निभाते हैं, घर के कामकाज निपटाकर, कभी सूखी रोटी तो कभी भूखे ही स्कूल चले आते हैं। ये अपने बीमार परिवार वालों के लिए नर्स हैं, छोटे भाई-बहन के लिए मां हैं, सामाजिकता निभाने को घर के जिम्मेदार हैं, घर का कर्ज चुकाने के मजदूर भी हैं। बिना पढ़े, बिना स्कूल का काम किए, बिना पाठ को याद किए ये कक्षा में अपने कंधों पर पहाड़ सा बोझ लिए बैठ जाते हैं जड़ होकर। मायूस, बेबस शिक्षक कुछ कह नहीं पाता, कुछ कर नहीं पाता। कुछ तो सरकारी नियमों से बंधा वो, कुछ बच्चों का मनोविज्ञान समझता है वो। हर बच्चा एक समान नहीं हो सकता। सबकी क्षमता, रूचि, अभिरूचि अलग होती है, बालकेन्द्रित शिक्षा होनी चाहिए; सब जानते हैं, मानते हैं। पर बच्चों को तो तय समय-सीमा में निपुण बनाना ही है।
〰️हर बड़ी परीक्षा से पहले व बाद में हमारा चिन्तनशील समाज बच्चों को समझाते नजर आता है कि नम्बरों की दौड़ अंतिम लक्ष्य नहीं है पर क्या कभी किसी ने उस बच्चे का कष्ट महसूस किया है जो बहुत ही द्रवित होकर कहता है कि " हमसे नहीं होती पढ़ाई, मेरा दिमाग दुखने लगता है। नहीं करनी मुझे पढ़ाई, रोज रोज बुलाने न आ जाया कीजिए "। कल्पना कीजिए उस बच्चे की मन:स्थिति। आप इस कथन की भयावहता से सिहर जाएँगे। फिर भी न जाने किस मिट्टी से बना होता है सरकारी स्कूल का शिक्षक। भर लेता है वह उस नन्ही चिड़िया को अपने अंक में, धीमे-धीमे सहलाकर मजबूत करता है उसके डैनो को। न भर सका गर यह पंछी ऊँची उड़ान तो भी कर तो सकेगा अपनी हिफाजत दुनिया के नुकीले पंजे से।
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बहुत कुछ है जो रोज घटता है सरकारी स्कूल के शिक्षकों और उनके बच्चों के बीच, बहुत कुछ टूटता-बिखरता फिर बनकर संवरता है। फिर भी लोग कहते हैं कि क्या करता है सरकारी स्कूल का शिक्षक। कहने को तो बहुत है पर भावनाएँ जब प्रबल हों तो शब्द भी मौन हो जाते हैं।
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एक बार इस प्यारे से, अनोखे से रिश्ते को महसूस करके देखिए, आप भी जब कभी टूटकर बिखर रहे होंगे, आना चाहेंगे इन्हीं सरकारी स्कूल के शिक्षकों के अपनेपन के तले।
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